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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 319 इनकी कहानियों में सर्वत्र छिपा रहता है। सुन्दर रोचक कथावस्तु, वातावरण, विश्लेषणात्मक चरित्र-चित्रण एवं मार्मिक कथोपकथन के द्वारा जैन संस्कृति एवं विचारधारा का प्रचार-प्रसार उनके कथा-साहित्य का महत् उद्देश्य है, जिसमें वे काफी हद तक सफल भी हुए हैं। इस संग्रह में मिलन, पूंजीपति, लुटेरा, प्रतिशोध, खून की प्यास एवं चरवाहा छः कहानियाँ संग्रहीत हैं, जिनमें से अंतिम 'चरवाहा' अन्यत्र भी संकलित है। ___ 'मिलन' का प्रारंभ ही लेखक ने सुंदर विचारात्मक ढंग से किया है-वासना को इसलिए भी बुरा कहा गया है कि वह विषयी के प्राप्त ज्ञान को भी खो देती है। वह सौंदर्य मदिरा पीकर मनुष्य पागल हो जाता है। भूल जाता है कि में किस अनर्थ की ओर दौड़ रहा हूँ। और उसी उन्मत्त दशा में वह ऐसा भी कर बैठता है कि फिर पीछे जिन्दगी भर उसके लिए रोने, पछताने, मुँह दिखाने भर के लिए जगह न पाये। यक्ष दत्त युवराज साधु मुनि की चेतावनी के कारण महा अनर्थ से बच जाता है। क्योंकि अपनी ही सगी माँ मित्रवती से मिलन के लिए वह वासना से उद्दिप्त होकर जा रहा था, लेकिन परोपकारी मुनि महाराज ने जब सच्चाई बताई कि तूं मित्रवती का ही पुत्र है, जिसे रत्न कम्बल में लपेटकर वह नदी के किनारे वस्त्र धोने गई थी और पीछे से कुत्ते ने खाने की चीज समझकर उठा लिया। बाद में राजा यक्ष एवं रानी राजिला ने तुझे बेटे की तरह पाला। यक्षदत्त की आँखें खुल गईं, मनुष्यता जग उठी और-माँ-बेटे का पवित्र मिलन हुआ। ___'पूंजीपति' का प्रारंभ सुन्दर प्राकृतिक वर्णन से किया गया है। प्रकृति के सौंदर्य के कारण कभी-कभी उसके कारण पैदा होती समस्याओं का भी लेखक ने निरूपण किया है। चम्पापुरी के महाराज अभयवाहन और उनकी सौंदर्यवती महारानी पुण्डरिका दोनों को वर्षा ऋतु मुग्ध करती प्रतीत होती है, उसी समय महल के सामने नदी में एक लकड़हारे को अथक परिश्रम करते देखा तो दयावश बुलाकर कुछ मांगने को कहा, लेकिन वह तो काफी अमीर था, वहाँ का अखूट ऐश्वर्यशाली श्रेष्ठि था। लेकिन वह अत्यन्त कृपण था, जबकि उसकी पत्नी नागवसु उदार एवं महान स्त्री थी। वह अपने पति के धनलोभ को धिक्कारती थी। श्रेष्ठि इकट्ठी की गई संपत्ति से नहीं, बल्कि परिश्रम करके धन इकट्ठा करते-करते रत्न का मंदिर बनवाना चाहता था, लेकिन मंदिर बनने से पूर्व धन बटोरते-बटोरते ही वह चल बसा। दृढ़ता व एकाग्रता का एक अंश जीवन को धन्य बनाता है। इस तथ्य को
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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