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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 315 दोनों दिगम्बर साधु से-वीरसेन सजा ने विरक्ति के कारण दीक्षा ले ली थी-दीक्षा ग्रहण कर पाप-मुक्त होने की कोशिश में लगते हैं। 'पाप का प्रायश्चित' में कामुकता के दुष्परिणाम को प्रकट किया गया है, जो ज्ञान को भी अंधा कर अच्छे-बुरे का भेदभाव मिटा देता है। देश भूषण एवं कुल-भूषण दो राजकुमार भाइयों की मानसिक परिस्थिति का सुन्दर चित्रण किया गया है। बचपन से आश्रम में विद्याभ्यास करते रहने से महल में छोटी बहन की स्थिति से वे अनभिज्ञ दो भाई गृहस्थाश्रम में प्रवेश करते समय स्वागत-सत्कार के समारोह में अपनी बहन के सौंदर्य से मुग्ध होकर पत्नी बनाने का स्वप्न देखते हैं, लेकिन वास्तविकता का पता चलते ही लज्जा एवं आत्मग्लानि से भरकर संसार-त्याग करने का निश्चय करते हैं। 'रात की बात' में संयम-नियम के महत्त्व को अंकित करते हुए रात्रि-भोजन त्याग के लाभ का वर्णन किया है। संयम-नियम रहित मनुष्य पशु समान है तथा इनके पालन से पशु भी-'देवत्व' पा सकता है। 'क्षमा के पथ पर' में रानी सुमन के कुबड़े के साथ व्यभिचार से क्षुभित राजा की क्षमावृत्ति और वैराग्य भावना का मार्मिक अंकन किया गया है। ___ 'करनी का फल' में अनेक गुणों से विभूषित अयोध्या के राजा सूरत की कामभोग के प्रति तीव्र आसक्ति का रोचक वर्णन है। 500 रानियों के साथ यथेच्छा काम भोग करते हुए करनी का फल पाने पर राजा को पछतावा होता है, उसका अच्छा निरूपण किया है। साधु-मुनियों की आवभगत में लीन राजा की उपेक्षा देखकर महारानी सती-साधु निंदा का पाप करने के फलस्वरूप कुष्ठ रोगिणी हो जाती हैं। पापाचार के ऐसे तात्कालित भयंकर फल को देख राजा को विषय-वासना के प्रति नफरत जाग उठती है और संसार का त्याग कर जंगल में तपस्या के लिए चले जाते हैं। ___ 'आत्म बोध' से सामान्य कथा वस्तु है, जिसमें बेवफाई को निरूपित करने वाली सात चोर भाइयों एवं राजकुमारी मंगी की बेवफाई की कहानी है। अंत में सभी संसार त्याग करते हैं। _ 'अन्तर्द्वन्द्व' इस संग्रह की उत्कृष्ट कहानी है, जिसमें प्रमुख पात्र प्रभव और सुमित्र दो गहरे मित्र का चरित्र-चित्रण मनोवैज्ञानिक ढंग से किया गया है। पात्रों का मानसिक विश्लेषण भगवत जी की अनूठी विशेषता है। प्रभव बिछुड़े हुए मित्र सुमित्र के बिरह में दिन-रात व्याकुल रहता है, लेकिन पुनः मिलन के समय उन्हीं मित्र के साथ अनिद्य सुन्दरी को देख मित्रता भूल वासना का शिकार हो जाता है।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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