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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 313
'राजपुत्र' में महाराजा श्रेणिक एवं महारानी चेलना जैसे सुयोग्य माता-पिता के सुयोग्य पुत्र वारिषेण की त्याग-भावना व्यक्त की गई है। आत्म-चिंतन एवं मनन में डूबा हुआ कुमार स्वयं विराग की साक्षात् मूर्ति था। श्मशान के पास साधना में तल्लीन वारिषेण के निकट शहर का कुख्यात चोर राजमहल से चुराए हार को फेंक कर छिप जाता है। फलतः सिपाही वारिषेण को दंभी समझकर राजा के संमुख प्रस्तुत करते हैं। स्वयं राजा प्राण दण्ड की सजा देते हैं-न्याय के सम्मुख ममत्व की हार स्वीकारते हुए-कुमार चुपचाप दण्ड स्वीकार करते हैं, अपनी सफाई तक नहीं देते, केवल संसार व भाग्य की बिडम्बना के बारे मे सोचते रहते हैं। जैसे-ही जल्लाद की तलवार उठी, आश्चर्य! कुमार के तपोबल के सामने वह पुष्पमाला बन गई। राज सिंहासन पर वारिषेण विराजमान हैं, एवं देवता गण पुष्प वृष्टि करते हैं। सभी आश्चर्य से इस कौतुक को देखते रहते हैं। तभी विद्युत चोर भी उपस्थित होकर सब वृतान्त कहकर अपना गुनाह स्वीकार करता है। राजा श्रेणिक पश्चात्ताप से कुमार से क्षमा याचना करते हैं। लेकिन वारिषेण दुनिया के ऐसे तमाशों से विरक्त होकर मुक्ति के पथ पर अग्रसर होने के लिए निकल पड़ा था।
'पूर्णिमा' नामक अंतिम कहानी में लेखक ने स्पष्ट किया है कि धन, रूप, शक्ति से मानव की महानता नहीं नापी जाती, महानता तो है त्याग, तपस्या, संयम व मानवतापूर्ण वातावरण में। गरीब लकड़हारे ने पूर्णिमा के दिन ब्रह्मचर्य का व्रत कठिन संजोग में भी निभाकर अपनी पवित्रता व दृढ़ता का सबूत दिया, जबकि सामने शहर की सर्वश्रेष्ठ रूपभोग्या नर्तकी पद्मावती को गाढ़े पसीने की कमाई का 500 रुपये देकर भोग के समय व्रत की याद आ जाने से दूर चला जाता हैं और पद्मावती का दिल जीत लेता है। (2) दुर्गद्वार :
इस संग्रह में भी भगवत जैन ने पौराणिक आधार पर से कहानियाँ लिखी हैं। "कहानी और कथा में इतना ही अन्तर होता है कि कहानी काल्पनिक भी होती है। कथा की आधारशिला सत्य घटना होती है। कहानी का उद्देश्य मनोरंजन या कोई शिक्षा प्रतिपादन होता है, जबकि कथा शिक्षा के साथ-साथ किसी सैद्धांतिक तथ्य की स्पष्टता या पुष्टि करता है। यदि पौराणिक कथाओं को सिद्धान्तों के दृष्टान्त कहा जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी। ऐसी सैद्धांतिक सच्ची घटनाओं का संकलन है इस 'दुर्गद्वार' में।'
प्रथम कहानी 'दुर्गद्वार' में अहिंसा का महत्त्व बताया गया है। हिंसा, बलि 1. भगवत जैन : दुर्गद्वार, प्रस्तावना, कपूर चन्द्र जैन, पृ० 3.