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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 293 और दो भाग प्रकाशित होने वाले हैं। प्रा० राजकुमार साहित्याचार्य ने इन कथाओं को इतनी सहज सुन्दर शैली में अनुवादित किया है कि मूल भावों को पूर्णतः अक्षुण्ण रखते हुए रोचकता का पूर्ण निर्वाह किया गया है। इसके प्रथम भाग में 55 कथाएँ और द्वितीय भाग में 17 कथाएँ संग्रहीत हैं। अनुवाद की भाषा सरल, प्रवाह युक्त एवं सुसज्जित है। दो हजार वर्ष पुरानी कहानियाँ : डा. जगदीश चन्द्र जैन ने जैन आगमों की पुरानी कथाओं को सरल ढंग से भाववाही शैली में अनुवादित किया है। 64 कहानियों को लेखक ने तीन भागों में विभक्त किया है (1) लौकिक (2) ऐतिहासिक (3) और धार्मिक। प्रथम भाग में 34, दूसरे भाग में 17 और तीसरे भाग में 13 कहानियां हैं (4) लौकिक कथाओं में सम्प्रदाय या वर्ग की भेदभाव, बिना लोक प्रचलित कथाओं का संकलन किया गया है। इस वर्ग की कथाओं में कई कहानियां रोचक एवं मर्मस्पर्शी हैं। इन लौकिक कहानियों का मूल थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ बौद्ध धर्म के जातक साहित्य, जैन-धर्म के आगम साहित्य एवं ब्राह्मण साहित्य में प्राप्त होता है। (2) दूसरा भाग ऐतिहासिक कहानियों का है जिसका संकलन यथासंभव ऐतिहासिक क्रम से किया गया है। भगवान महावीर और बुद्ध के समकालीन अनेक राजा-रानियों का उल्लेख प्राकृत और पालि-साहित्य में आता हैं। जैनों ने इन राजाओं को जैन कहा हैं और बौद्धों ने बौद्ध।.वस्तुतः राजाओं का कोई धर्म-विशेष नहीं होता लेकिन ये किसी भी महान धर्म या पुरुष की सेवा-उपासना करना अपना धर्म समझते हैं। इसके अतिरिक्त प्राचीन काल में साम्प्रदायिकता का वैसा जोर नहीं था, जैसा हम उत्तरकाल में पाते हैं। अतएव, उस समय जो साधु-महात्मा नगरी में पधारते थे, राजा उनके दर्शनार्थ नगरजनों के साथ जाते थे। ऐसी दशा में श्रेणिक राजा, (बिंबिसार) कोणिक (अजातशत्रु) और चन्द्रगुप्त आदि राजाओं के विषय में संभवतः यह कहना कठिन है कि वे महावीर के विशेष अनुरागी थे या बुद्ध के। 'इस प्रकार की ऐतिहासिक कहानियों से प्राचीन भारत की सामाजिक अवस्था पर भी प्रकाश पड़ता है। उस समय के सामन्त लोग बहुत विलासी होते थे। बहुपत्नीत्व प्रथा का प्रचलन था। कूटनीति के दांव-पेंच काम में लिए जाते थे, महायुद्ध होते थे, राजाज्ञा का पालन न करने वालों को कठोर दण्ड दिया जाता था, कैदियों को बन्दीगृह में कड़ी यातनाएँ भोगनी पड़ती थीं, सामन्त लोग छोटी-छोटी बातों पर लड़ बैठते 1. प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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