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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु 291 का उद्देश्य होता है। जीवन की विविध समस्याओं को सुलझाने में धर्म के उपयोग की चर्चा, कर्मों का प्रभाव, और परिणाम जन्म-जन्मान्तर में भुगतने की प्रक्रिया विस्तार से और आकर्षक शैली में पाई जाती है। इस काल की सामाजिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक जीवन की झांकी भी इन कथाओं में मिलती है। कथाएँ विस्तार में दी जाती हैं, लेकिन उसका आकर्षण अंत तक बना रहे, इस प्रकार की रचना की जाती है। कथानक में कहीं नीरसता नहीं आने पाती। कथा के बीच-बीच में संकेतों के द्वारा कथा का उद्देश्य स्पष्ट किया जाता है। स्व. डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने लिखा है कि-विक्रम संवत के प्रारंभ से 12वीं शती तक जैन साहित्य में कथा-ग्रंथों की अविछिन्न धारा पाई जाती है। यह कथा साहित्य इतना विशाल है कि उनके समुचित संपादन और प्रकाशन के लिए 50 वर्ष से कम समय की अपेक्षा नहीं होगी। जैन-कथाओं में वर्तमान पर अत्यन्त जोर दिया जाता है। भूतकाल के कर्मानुसार वर्तमान बनता है और वर्तमान के कर्मों के आधार पर भविष्य की नींव रहती है। इन कहानियों में मनुष्य के वर्तमान जीवन की यात्राओं का ही वर्णन नहीं रहता, मनुष्य की आत्मा की जीवन कथा का भी वर्णन मिलता है। जैन कथा साहित्य के सम्बंध में बताया गया है कि-सभी जैन कहानियाँ धर्मोपदेश का अंग माननी चाहिए। जैन धर्मोपदेशक उपदेश के लिए प्रधान माध्यम कहानी को रखता था। भगवान महावीर द्वारा उपदेशित आगम ग्रन्थों में भी लघुरूपक, कथाएँ, कहानियाँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है। प्राचीन सूत्रों से ज्ञात होता है कि 'नायधम्म कहा' में किसी समय भगवान महावीर द्वारा कथित हजारों रूपक कथाओं का संकलन जिन आगम ग्रन्थों से ये कथाएँ ली गई हैं उनका महत्त्व है। ईस्वी के पूर्व चौथी शताब्दी ईस्वी से पाँचवी शताब्दी तक की भारत वर्ष की आर्थिक तथा सामाजिक दशा का चित्रण करने वाला यह साहित्य महत्त्वपूर्ण है। इन नष्ट-भ्रष्ट छिन्न-भिन्न आगम ग्रन्थों में अब भी ऐतिहासिक और अर्ध ऐतिहासिक सामग्री इतनी विपुल है कि उसके आधार पर भारत के प्राचीन इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय लिखा जा सकता है। इन कथाओं में पुरातत्त्व सम्बंधी विविध सामग्री भरी पड़ी है, जिससे भारत के रीति-रिवाज, मेले, त्यौहार, साधु-साम्प्रदाय, दुष्काल-बाढ़, चोर-लूटेरे, सार्थवाह और व्यापार के मार्ग, शिल्प, कला, भोजन, 1. जैन जगत पत्रिका, 1977 अप्रैल, संपादकीय, पृ० 8. 2. डा० ए.एन. उपाध्ये, बृहत् कथाकोष की भूमिका। 3. द्रष्टव्य-डा० एटैक का निबंध, ओन दी लिटरेचर ऑफ दी श्वेतांबर ऑफ गुजरात।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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