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________________ विषय-प्रवेश वातावरण में भी अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य, समानता व अनेकान्तवाद जैसे कल्याणकारी तत्वों के कारण स्वीकार्य होनी चाहिए। महावीर की 'महावीरता': जैन धर्म व समाज के लिए भगवान महावीर एक ऐसी अनन्य उपलब्धि रहे हैं कि जिन्होंने अनेकविध प्रयत्नों से जैन धर्म को एक नया जीवन्त रूप प्रदान किया, फलस्वरूप उनके उपरान्त भी जैन धर्म अक्षुण्ण रूप से प्रवाहित होता रहा। भगवान महावीर की महानता के विषय में डा. के. दामोदरन के विचार हैं कि-'श्रमण भगवान महावीर की महानता एवं विशेषता उनके इन प्रयासों में है कि उन्होंने अपने युग में जबकि ब्राह्मण धर्म अपनी पूर्व शक्ति से फैला हुआ था, तब बदलते हुए समय के अनुसार अपने पुरोगामी भगवान पार्श्वनाथ के सिद्धान्तों और मान्यताओं को परिवर्तित एवं परिवर्द्धित करके उनको पुनः स्थापित करने का भगीरथ कार्य किया। महावीर ने अपने समय की धार्मिक एवं सामाजिक परिस्थितियों के संदर्भ में सानुकूलता सिद्ध कर सकने वाली क्रांति का वातावरण चारों ओर निर्मित किया। महावीर को हम समानता के स्थापक के रूप में, नारी को सामाजिक व धार्मिक महत्व देने वाले समाज सुधारक के रूप में साहित्यिक भाषा का त्याग कर लोक-भाषा में उपदेश देने वाले उपदेशक व विचारक के स्वरूप में तथा मनुष्य की संपूर्ण स्वतंत्रता स्वीकारने वाले जैन धर्म के जागृत अग्रदूत के रूप में निसंकोच मानते हैं। समानता के स्थापक महावीर : वैसे सभी धर्म प्रणालियों ने मनुष्य-मात्र को समान समझने का संदेश दिया है, लेकिन भगवान महावीर ने तो मानव समानता को अपने जीवन व संदेश का मूलमंत्र बना लिया था। उनके समय में मनुष्य की समानता व स्वतंत्रता का आदर्श क्षीण पड़ गया था, जिससे समाज जाति-पांति और अमीर-गरीब, ऊँच-नीच आदि वर्गों में विभक्त हो गया था। 'ब्राह्मणों को अमर्यादित अधिकार प्राप्त था, जबकि शूद्रों की दशा गुलाम जैसी ही थी। जाति-पांति के भेदभाव के कारण ब्राह्मण धर्म की मर्यादा भी सीमित बन गई थी। ब्राह्मणों और क्षत्रियों जैसे उच्च वर्गों का ही समाज में विशेष आदर था।' जबकि निम्न जातिवालों का दबने और पीसने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं था। महावीर ने अपनी साधना के बारह वर्षों में भेदभाव की उस भयंकर खाई 1. डा. के. दामोदरन-भारतीय चिन्तन धारा-पृ. 132. 2. द्रष्टव्य-पं० दलसुख मालवणिया-जैन धर्म चिन्तन-पृ. 9.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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