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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
या भाषा का चमत्कार भी नहीं है लेकिन अहिंसात्मक विचारधारा का उचित उद्रेक ही काव्य का महत्वपूर्ण अंश बन गया है। जनकनंदिनी : ___छोटा-सा काव्य है। रामायण की कथा से इसमें काफी परिवर्तन कर दिये है, क्योंकि लव-कुश मिलाप के बाद सीता वाल्मीकि आश्रम में थी, राजा वज्रजंग के यहाँ नहीं, लेकिन जैन पुराण की राम कथा को आचारवस्तु बनाया गया होने से भगवत् को भी उसी का अनुसरण करना पड़ा है। राम का चरित्र जैन रामायण में काफी गिराया गया है। कवि ने भी इसमें राम के गौरव युक्त चरित्र के लिए अरुचिरकर भाषा का प्रयोग किया है। सीता के लिए 'निर्लज्ज' शब्द प्रयोग राम के गौरवपूर्ण चरित्र के लिए कहाँ तक उचित हैं?
बोले राम खुश नहीं हूँ मैं देख तुम्हें मन में सीते ताजा है अपराध आज भी, है यद्यपि वर्षों बीते। मेरे तुम परित्याग लिए भी नहीं छोड़ती हो ममता। इस वेशरमी की बतलाओ कौन कर सकेगा समता। (पृ. 45)
सीता अग्नि परिक्षा के लिए उद्यत होती हैं और पावक अग्नि अपनी शक्ति से पानी का कुण्ड भर देता है। उसमें कमल पर राज सिंहासनारूढ़ देवी सीता है। सभा जन एवं आप्त जन जय जय कार करते हैं। राम भी लज्जित होकर सीता को अपना पद संभालने के लिए कहते हैं, लेकिन सीता कहती हैं
सीता उठकर खड़ी हुई बोली विरक्त होकर वाणी, काफी देख चुकी हूँ रघुपति, किस्मत की खींचातानी नहीं किसी का दोष, दोष तो है सिर्फ भाग्य का, जिसके आगे बलशाली भी रहता है होकर खामोश॥ (पृ. 54)
और सीता केश नोंच कर साध्वी बनने के लिए वैराग्य के मार्ग पर गमन करने के लिए तैयार हुई। राम काफी दु:खी शरमिन्दा होकर सीता से क्षमा-याचना करते हैं और वापस लौटने के लिए बार-बार विनती करते हैं लेकिन अब सीता उत्तम वैराग्य मार्ग पर अपने पांव दृढ़ता से रख चुकी हैं, अतः इन्कार करती हैं। साधु-सेवी :
जैन धर्म उपासक किसी सेठ के गुरु को कोढ़ निकला है और राजसभा में उन्हीं गुरु की चर्चा निकलने पर राजा सेठ जी को पूछते हैं, लेकिन गुरु कोढ़ी है, ऐसा निंद्य शब्द कैसे जिह्वा पर आए? सेठ ने गुरु के तप और पवित्रता की प्रशंसा की लेकिन सचाई की परीक्षा-हेतु दूसरे दिन सभी जंगल में जाकर