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आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
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खण्डकाव्यों का-वीरता की कसौटी, बाहुबलि, एवं प्रतिफलन-भी नामोल्लेख किया है। लेकिन वे अप्राप्त होने से उनकी विवेचना संभव नहीं हो पाती।
126 पदों में रचित इस लघु खण्ड काव्य में कवि ने अंजना के विवाह से चिंतित राजा महेन्द्र की उद्विग्न स्थिति के वर्णन से कथा सूत्र का प्रारंभ किया है। राजा महेन्द्र सुयोग्य कन्या रत्न के लिए योग्य वर खोजने की चिंता करते हैं और अपने मंत्री-गण से इस सम्बंध में राय पूछते हैं। समी मंत्री इच्छा व योग्यतानुसार भिन्न-भिन्न राजकुमार के नाम बताते हैं, लेकिन प्रधान मंत्री कुछ-न-कुछ दोष निकाल कर इन्कार कर देते हैं और स्वयं राजा प्रह्लाद एवं रानी केतुमती के सुयोग्य वीरपुत्र पवनंजय के लिए विज्ञप्ति करते हैं। योगानुयोग राजा प्रह्लाद सपरिवार हिमालय-दर्शन करने वहीं आये हैं। दोनों राजाओं की मानसिक इच्छाएँ व्यवहार में परिणत हो जाती हैं
बड़े ठाठ से शुभ बेला में, हुई सगाई सनंद पाणिग्रहण मूहुरत ठहरा, तीसरे दिन का ही सुखंद॥
फिर राजकुमार का अंजना एवं सखियों के बीच वाटिका में चलते आनंद-विनोद एवं वार्तालाप को छिपकर देखना और 'मिश्रकेशी' नामक सखी का पवनंजय की अपेक्षा विद्युत्प्रभ राजकुमार की तारीफ करने पर अपने प्रियतम पवनंजय के रूप-सौंदर्य व वीरता के विचारों में खोई हुई अजंना का मिश्रकेशी की बात का प्रत्युत्तर या प्रतिकार न करने की चेष्टा का पवनंजय गलत अंदाज लगाकर अजंना के चारित्र्य पर वहम लाता है व अपने इस अपमान का बदला लेने का निश्चय कर बैठता है। कवि शादी का वर्णन जल्दी में कर देते हैं। पवनंजय का शादी से इन्कार, फिर प्रहस्त का मित्र को समझाना-बुझाना, ऐसे मार्मिक प्रसंगों को कवि ने छोड़ दिया है, यदि ऐसे मार्मिक प्रसंगों का कवि ने त्याग न किया होता तो खण्ड काव्य अवश्य रोचक एवं भावपूर्ण बन सकता था। दो पदों में ही इस भावप्रधान प्रसंग का वर्णन कर दिया है, जिसमें वे पवनंजय के हृदय की क्रियाप्रतिक्रियाएँ, भावनाएँ, परिवर्तित विचारों की तीव्र भावाभिव्यक्ति कर सकते थे
चले वहाँ से गये पवनंजय, चढ़ विमान पर घर आये। सारी रात जाने भ्रमवश हो, आर्तध्यान कर दुःख पाये॥ मान-सरोवर के तट ऊपर, रचा गया मण्डप सुविशाल। उसमें पाणिग्रहण रति से हुआ जब शुद्ध सुकाल॥ (49-50)
तदनन्तर वैर वृत्ति की दहकती आग से जलता हुआ पवनंजय निर्दोष, 1. डा. नेमिचन्द्र शास्त्री : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, द्वितीय भाग, पृ० 24.