SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 161 आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन होना सहज है, जिसके द्वारा सौंदर्य, प्रेमादि के विविध रसमय प्रसंगों की अवतारणा कवि सरलता से कर पाता है। 'वर्धमान' महाकाव्य में अनूप जी को दोनों सम्प्रदायों की भिन्न विचारधारा में सामंजस्य स्थापित करने के लिए महावीर का व्याह स्वप्न में मुक्ति देवी के साथ योजित करना पड़ा, जो धार्मिक-आध्यात्मिक-संवेदना तो अवश्य जागृत कर सकती है, लेकिन यौवन-सभर नायिका के वर्णन से जिस मनोहर, रसपूर्ण शृंगार-रस की अनुभूति हो, वह स्वप्न में मुक्ति रानी के साथ व्याह में कैसे संभव हो? राम-कृष्ण की चारित्रिक विशेषताएं, हार्दिक संवेदनाएं और गुणों को उद्भूत करनेवाले प्रतिस्पर्धी पात्र रहते हैं, जबकि महावीर के सामने 'काम' या 'मार' को प्रति नायक बनाकर वीर रस के कृत्रिम उपादान जुटाने पड़ते हैं। __काव्य में महावीर को नायकत्व की भूमि पर प्रतिष्ठित करने की असुविधा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डा. विश्वंभर नाथ उपाध्याय लिखते हैं-"राम-कृष्ण बुद्ध की तुलना में 'महावीर' के सम्बंध में जनप्रिय काव्य कम दिखाई पड़ते हैं। कारण यह है कि महावीर के जीवन में मानवीय दुर्बलताओं अर्थात् 'राग' का वर्णन जैन कवियों ने उचित नहीं समझा। जनता में महावीर का चरित्र इतने उदात्त रूप में स्वीकृत है कि वह उनके साथ तादात्म्य नहीं कर पाती। आधुनिक युग में भी जैन कवियों ने धार्मिक भय से इस दिशा में कार्य नहीं किया। + + + अनूप शर्मा दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में समन्वय स्थापित करना चाहते थे। फिर उन्हें यह भी भय रहा होगा कि महावीर को अधिक मानवीय रूप देने से जैन-समाज क्रुद्ध न हो जाय।" . इस महाकाव्य में महावीर से सम्बंधित श्रृंगार रस की समुचित निष्पत्ति नहीं हो पाई है। राजा सिद्धार्थ एवं रानी त्रिशला के दाम्पत्य जीवन, रति क्रीड़ा, तथा रूप वर्णन के द्वारा श्रृंगार रस फलित होता है। प्रारम्भ के सात सर्ग तक राज-दम्पति को ही प्रमुख स्थान दिया गया है और चरित-नायक का जन्म तो आठवें सर्ग में होता है। 17 सर्ग में इस महाकाव्य में सात सर्ग सिद्धार्थ-त्रिशला के वर्णन से सम्बंधित हैं। इससे उन दोनों को तो महत्व प्राप्त होता है, लेकिन कुमार वर्धमान का चरित्र बहुत बाद में उभरता है। अतः नायक सिद्धार्थ को स्वीकारा जाये या वर्धमान को? यह प्रश्न भी उठता है। शृंगार रस की निष्पति के लिए कवि ने सिद्धार्थ की उपस्थिति को ही विशेष उपयुक्त समझा है। सिद्धार्थ व त्रिशला की चारित्रिक-विशेषता, रानी त्रिशला का सिद्धार्थ के द्वारा 1. डा. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय- वर्धमान' और द्विवेदी युगीन परम्परा निबंध-अनूप शर्मा-कृतियों और काव्य संकलन के अन्तर्गत, पृ. 151-152.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy