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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
अभी-अभी हुआ। जैन समाज ने धर्म प्रेमी विद्वान साहित्यकार की कमी महसूस की है। प्रवाहपूर्ण शैली व वर्णनों की विशेषता आपके निबंधों में पायी जाती है।
__ कस्तूरचन्द काशीवाल ने भी शोधात्मक निबंध लिखे हैं, जिनमें विषय की स्पष्टता प्रमुख रूप से पायी जाती है।
प्रो० देवेन्द्रकुमार, विद्यार्थी नरेन्द्र, श्री पृथ्वीराज आदि भी अच्छे निबंधकार हैं। पं० अजीतकुमार शास्त्री ने खण्डन-मण्डनात्मक शैली में अनेक निबंध लिखे हैं, जिनकी भाषा विषयानुकूल और तर्कपूर्ण है। मूलचन्द जी कापड़िया भी संपादक के साथ साहित्यिक निबंधकार हैं। श्री दरबारीलाल 'सत्यभक्त' चिन्तनशील दार्शनिक और साहित्यकार हैं। सत्यभक्त जी की रचनाओं से केवल जैन-साहित्य ही नहीं, अपितु हिन्दी साहित्य का भण्डार भी बढ़ा है।
इन सबके अतिरिक्त एक उल्लेखनीय प्रतिभा सम्पन्न प्रसिद्ध साहित्यकार के रूप में श्री जैनेन्द्र कुमार जैन का नाम उल्लेखनीय है, जिनकी प्रायः सभी रचनाओं में दार्शनिकता का पुट रहता है। हिन्दी साहित्य में श्रेष्ठ कथाकार के साथ विद्वान निबंधकार के रूप में भी आपका यश प्रकाशित है। एक प्रखर चिन्तक और दार्शनिक के रूप में आप अपने निबंधों में उपस्थित रहते हैं। जैन-दर्शन से आप काफी प्रभावित होने से आपके साहित्य-विशेषतः निबंधों की पार्श्वभूमि में जैन दर्शन से प्रभावित विचारधारा का रहना स्वाभाविक है। आपने हिन्दी साहित्य को एक नया मोड़ व शैली प्रदान की है, जिसे 'जैनेन्द्र शैली' कही जाती है। आपकी रचनाओं में आध्यात्मिकता का जो सुर प्रस्फुटित होता है, वह जैन दर्शन से प्रभावित है।
आचार्य नथमल मुनि आधुनिक काल के प्रखर जैन दार्शनिक हैं। उनके जैन दर्शन पर चिन्तनात्मक और मीमांसात्मक अनेक फुटकर निबंधों की संख्या पर्याप्त मात्रा में है। छोटे-छोटे प्रभावशाली विचार-प्रधान निबंध संग्रह 'बीज
और बरगद', 'समस्या का पत्थर अध्यात्म की छेनी', 'तुम अनंत शक्ति के स्रोत हो' आदि में हमें उनकी तर्क प्रधान विशिष्ट शैली के दर्शन होते हैं।
इसी प्रकार तेरापंथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य तुलसी की जैन दर्शन शास्त्रों के विषय में विद्वता प्रसिद्ध है। मननीयता एवं विचारात्मकता उनके लेख, व्याख्यान आदि से व्यक्त होती है। 'क्या धर्म बुद्धि गम्य है?' उनके सुन्दर निबंधों का संग्रह है। 1. प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली। 2. प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, इसकी प्रति जैन साहित्य विकासमंडल'-इर्ला
ब्रिज, विलेपार्ला से प्राप्त हुई थी।