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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
निबंध लिखे हैं। विषय को समझाने की आपकी शैली सरल व तर्कयुक्त है। भाषा परिमार्जित और संयत होने के साथ नीरस विषय को भी रोचक ढंग से समझाने की आपकी विशेषता है। साहित्यिक और सामाजिक निबंध :
साहित्यिक निबंध लिखनेवालों में प्रेमीजी, कामताप्रसाद जैन, मूलचन्द 'वत्सल', प्रो. राजकुमार 'साहित्याचार्य', पन्नालाल बसंत, श्री अगरचन्द नाहटा, श्री कृष्णदास रांका, श्री जमनालाल जी प्रमुख हैं। श्री प्रेमी जी ने अपने 'हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास' में अनेक कवियों की जीवनी के बारे में अन्वेषणात्मक शैली में लिखा है। यह वास्तव में शुद्ध इतिहास न होकर संशोधनात्मक साहित्यिक लेखों का संग्रह है, जो आज तक हिन्दी जैन साहित्य के लिए पथ-प्रदर्शक माना जाता है। प्रेमी जी की तरह बाबू कामताप्रसाद जी ने भी 'हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' थोड़े-बहुत नवीन उद्धरणों के साथ लिखा, जिसमें थोड़ी बहुत त्रुटियों के रह जाने पर भी इसका स्थान काफी महत्त्वपूर्ण है। हिन्दी जैन साहित्य के लिए मार्गदर्शक भी है। आपने अन्य भी कई साहित्यिक निबंध लिखे हैं।
महात्मा भगवानदीन ओर सूरजभानु वकील सफल निबंधकार हैं। भगवानदीन के 'स्वाध्याय' निबंध-संग्रह में मनोवैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक निबंध है। इनकी शैली तर्कपूर्ण व रोचक है। 'वीरवाणी में भी आप दोनों के साहित्यिक निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। पं० चैनसुखदास न्यायतीर्थ और उनकी मण्डली जयपुर के अनेक कवियों पर संशोधनात्मक कार्य कर रही है, जो अवश्य हिन्दी जैन साहित्य की अमूल्य निधि रहेगी।
श्री अगरचन्द जी नाहटा प्रतिभासंपन्न तथा ज्ञान-वृद्ध निबंधकार एवं संशोधनकर्ता हैं। आपने कवियों के जीवन, उनके राज्याश्रय एवं जैन ग्रन्थों पर परिचयात्मक एवं संशोधनात्मक असंख्य लेख लिख कर जैन साहित्य पर महती उपकार किया है। आपने केवल जैन साहित्य के विषय में ही न लिखकर हिन्दी साहित्य को भी गौरवान्वित किया है। हिन्दी साहित्य में भी आपको काफी सम्मान प्राप्त हुआ है। जैन एवं जैनेत्तर कोई पत्र या पत्रिका ऐसी न होगी, जिसमें आपका कोई निबंध प्रकाशित न हुआ हो। हिन्दी साहित्य के विवादात्मक प्रश्नों को सुलझाने में आपके निबंधों का श्रेयस्कर योगदान है। 'पृथ्वीराज-रासो' के विवाद का अन्त आपके महत्त्वपूर्ण निबंध द्वारा ही हुआ है। अनेक तेजस्वी अज्ञात कवियों को आपने अन्धकार से प्रकाश में लाने का भगीरथ श्रम किया है।
श्रीमती पण्डिता चन्द्राबाई जी ने स्त्री उपयोगी साहित्य का सर्जन किया