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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
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जैन साहित्य में निबंधों का आरम्भ इसी काल से माना जाता है। आधुनिक युग में हिन्दी जैन साहित्य का भण्डार निबंधों से अधिकाधिक भरा गया है। अन्य विधाओं की अपेक्षा अनेक विषयों में विविध प्रकार के अधिकाधिक निबन्ध लिखे गये हैं। यद्यपि उत्कृष्ट निबंधकारों की संख्या अल्प है, जो भारतेन्दु बाबू, बालकृष्ण भट्ट, आचार्य द्विवेदी जी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी, गुलेरी जी, नन्ददुलारे बाजपेयी, हजारीप्रसाद द्विवेदी तथा डॉ. नगेन्द्र जी की याद दिला सके (समकक्ष खड़े रह सके)। फिर भी पं० सुखलाल जी, पं० दलसुख मालवणीया, पं० नाथूराम प्रेमी, पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री प्रभूत्ति विद्वान निबंधकारों ने हिन्दी जैन साहित्य को समृद्ध करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। बहुत से निबंधकारों ने इतिवृत्त विषयों का निरूपण कर सुन्दर निबन्ध लिखे हैं। हिन्दी भाषा में लिखित जैन निबंधों को ऐतिहासिक, पुरातत्वात्मक, आचारात्मक, दार्शनिक, साहित्यक, सामाजिक और वैज्ञानिक विभागों में बांटा जा सकता है। ऐतिहासिक निबंधों की संख्या सर्वाधिक है। इस प्रकार के निबंध लिखने वालो में पं. नाथरामजी प्रेमी, पं० जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर', मुनि कल्याण विजयजी, पं० सुखलाल संघवी, मुनि जिनविजयजी, पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, पं. भुजबली शास्त्री आदि प्रमुख हैं। उनमें पं. नाथूराम प्रेमी ने शुद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थ न लिखकर जैनाचार्यों, जैन कवियों एवं अन्य साहित्य निर्माताओं के विषय में अनगिनत शोधात्मक, परिचयात्मक लेख एवं निबंध लिखे हैं। निबंधों का भण्डार अपनी मौलिक सूझ-बूझ तथा गहरे ज्ञान से प्रेमीजी ने भरकर गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। साथ ही उन्होंने सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी तीर्थक्षेत्र, वंश-गोत्र आदि के व्युत्पत्ति एवं विकास, आचार-शास्त्र के नियमों का भाष्य तथा विविध संस्कारों का विश्लेषण गवेषणात्मक शैली में लिखा है।. अनेक जैन धर्मी राजाओं की वंशावली, गोत्र, वंश-परम्परा आदि का निरूपण भी उन्होंने एक जागृत शोधकर्ता के समान किया है। अनेक जैन पत्र-पत्रिकाओं में प्रेमीजी के संशोधनात्मक निबंध प्रकट हुए हैं। पं. जुगलकिशोर मुख्तार का नाम भी ऐतिहासिक निबंधकारों में आदर से लिया जाता है। उनके ऐतिहासिक, दार्शनिक, वैचारिक निबंधों का संग्रह 'युगवीर निबंधावली-भाग-1-2 में संग्रहीत किये गये हैं। जैन साहित्य के अन्वेषणकर्ताओं में आपकी गणना होती है। आपने करीब 150 ऐतिहासिक निबंध लिखे हैं। कवि और आचार्य की परंपरा, निवास स्थान और समय निर्णय आदि की शोध करने में आपके निबन्धों का काफी योगदान है। उनकी लेखन-शैली अपनी विशेष है, वे एक ही विषय को समझाने के लिए बार-बार बताते चलते हैं, ताकि सामान्य पाठक भी पढ़कर समझ सकें। इससे कहीं पुनरावृत्ति का आभास लगता है, लेकिन सजगता के साथ ही