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________________ 126 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य प्रतीत होता है। धार्मिक चरित्र-ग्रन्थ होने के कारण जैन दर्शन के आचार-विचार तथा तत्वों का विश्लेषण यथायोग्य स्थल पर रहने के साथ तीर्थंकरों की जीवनी का रोचक कथा वार्ता के द्वारा प्रसार-प्रचार भी प्रमुख उद्देश्य बना रहता है। प्रायः लेखकों के कथा आधार समान होने पर भी शैली एवं भाषा की प्रौढ़ता, सुसंपन्नता, शैली तथा भावों की अभिव्यक्ति की भिन्नता के कारण चरित्र-ग्रन्थों में विविधता दीखती है। दूसरी विशेषता महावीर की जीवनी के सम्बन्ध में यह भी दृष्टिगत होती है कि दिगम्बर-श्वेताम्बर दो भिन्न मान्यताओं के कारण विषय वस्तु में थोड़ा-सा अंतर पड़ जाता है, क्योंकि श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार प्रभु का ब्याह हो चुका था और प्रियदर्शिनी नामक उनकी एक पुत्री भी थी, जिसकी शादी जामालि कुमार से हुई थी। दिगम्बर मान्यता वाले कभी-कभी कल्पना द्वारा 'मुक्ति' नामक युवती से विवाह संपन्न कराके दोनों मान्यताओं का सुभग समन्वय करने की कोशिश करते हैं। नाट्य-साहित्य : अतीत की किसी असाधारण, रोमांचक, मार्मिक घटनाओं का अनुकरण करने की प्रवृत्ति मनुष्य में सदैव पायी जाती है। अनुकरण की इसी वृत्ति ने अभिनय को जन्म दिया और अभिनय के द्वारा नाटक की प्रवृत्ति का प्रारम्भ हुआ। नाटकों के सृजन द्वारा जनता को मनोरंजन प्रदान करने के मुख्य उद्देश्य के साथ लोकशिक्षा का प्रयोजन भी जुड़ा रहता है। आधुनिक काल में जैन लेखक भी प्राचीन नाटकों का अनुवाद और समयानुसार प्राचीन कथानकों पर से मौलिक नाटकों का सर्जन भी करते रहे हैं। आलोच्य काल में पौराणिक एवं सामाजिक विषयों को लेकर हिन्दी-जैन लेखकों ने नाटकों की रचना की है। जैनेन्द्र किशोर आरावाला का नाम प्रारंभिक नाटककार के रूप में आदर से लिया जाता है। आपने एक दर्जन से भी ज्यादा नाटकों की रचना की हैं। वैसे इन नाटकों की शैली प्राचीन है (फिर भी इनके द्वारा हिन्दी जैन) साहित्य की काफी श्री वृद्धि हुई है। आरा में आपके प्रयत्न से एक नाटक मण्डली भी स्थापित की गई थी और आपके नाटकों का अभिनय करती थी। इनमें विदूषक का पात्र आप स्वयं अभिनीत करते थे। इनकी मृत्यु के बाद यह मण्डली बन्द हो गई। 'सोमासती' और 'कृपणदास' ये दो आपके प्रत्यन है। जैनेन्द्र किशोर के नाटक प्रायः पद्यबद्ध है। इन पद्यों पर उर्दू का प्रभाव अधिक रहता है। 'कलि कौतुक' ऐसा ही नाटक है। इसके अतिरिक्त 'मनोरमा सुंदरी' 'अंजना सुंदरी', 'चीर द्रोपदी', 'प्रद्युम्न चरित' और 'श्रीपाल चरित'
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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