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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
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रूप से बढ़ भी रहा था, किन्तु अंग्रेजों के माध्यम द्वारा स्थापित विभिन्न संस्थाओं, शिक्षा-केन्द्रों, उनके शासन की आवश्यकताओं और नवीन साहित्य, ईसाई धर्म, प्रेस, समाचार-पत्र आदि पाश्चात्य शक्तियों के फलस्वरूप प्रचलित नवीन भावों, विचारों आदि के द्वारा खड़ी बोली गद्य को प्रोत्साहन पाकर विकसित होने का अवसर प्राप्त हुआ। हिन्दी साहित्य में आधुनिक युग का प्रारंभ :
राष्ट्रीय व सांस्कृतिक जागृति के परिणाम स्वरूप हिन्दी साहित्य के इतिहास में भी आधुनिक युग का सूत्रपात इसी समय से होता है। क्योंकि हिन्दी प्रदेश का संसार के अनेक देशों की संस्कृतियों से ज्यों-ज्यों परिचय बढ़ता गया, त्यों-त्यों साहित्य में शैली, विचार एवं भाषा की दृष्टि से भी परिवर्तन परिलक्षित होने लगा। यह नवीनता व विशदता उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में संभव हुई। अंग्रेजी सभ्यता की गतिशीलता तथा विचार शक्ति का प्रभाव भारत की शिथिल हुई संस्कृति-सभ्यता पर होना स्वाभाविक है। परिणामस्वरूप हिन्दी साहित्य भी रूढ़िग्रस्तता एवं प्राचीन विचारों को छोड़कर गतिशील हुआ। उसमें नूतनता व आधुनिकता के बीज पनपने लगे। आधुनिक काल के प्रारंभ के सन्दर्भ में हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों में कोई मतभेद या विचार-वैषभ्य नहीं है, हां, दो-चार साल आगे पीछे स्वीकारने से कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता।
बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का आविर्भाव काल हिन्दी साहित्य के इतिहास में 'नवोत्थान काल' के रूप में स्वीकृत किया जाता है। अपना अलसाया जीवन छोड़कर भारतीय प्रजा ने फिर से जो गतिशीलता तथा विचार-प्रवाह का नया रूप अपनाया, उसका प्रभाव-प्रतिबिम्ब हिन्दी साहित्य ने पूरे उत्साह एवं चेतना के साथ अपनाया और अभिव्यक्त भी किया। आधुनिकता का विविध रूप हिन्दी साहित्य में व्यक्त होने लगा। "भारतेन्दु युग की आधुनिकता का अपना विशिष्ट संदर्भ है। यह आधुनिकता सम-सामयिक आधुनिकता से भिन्न एक विशिष्ट प्रकार के संक्रमणकालीन पुनरुत्थान से सम्बंधित है, जिसके साथ परम्परा-बद्धता, नवीनता के प्रति आग्रह, सांस्कृतिक बोध एवं आत्मनिष्ठा, नवीन जीवन-पद्धति आदि के मूल्य अवतरित हुए। भारतीयों ने एक साथ मिलकर एक शासन तंत्र से पहली बार एक प्रकार की पीड़ा का अनुभव किया।" आलोचकों और इतिहासकारों के मतानुसार हिन्दी साहित्य के आधुनिक युग के प्रारंभिक काल को 'भारतेन्दु काल' कहना सर्वथा उचित है, क्योंकि-"इस 1. द्रष्टव्य-डा. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय-'आधुनिक हिन्दी साहित्य' पृ. 207. 2. द्रष्टव्य-डा. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय-'आधुनिक हिन्दी साहित्य' पृ. 30. 3. द्रष्टव्य-हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास-द्वितीय खण्ड-भारतेन्दु युग, पृ. 82.