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________________ एम नवपद थुणतो तिहां लीनो, हुओ तन्मय श्रीपाल । सुजस विलासे चोथे खंडे, एह अग्यारमी ढाल रे || भविका ! सिद्ध ॥६॥ ढाल इच्छा रोधे संवरी परिणति समता योगे रे । " तप ते एहिज आतमा, वर्ते निज गुण भोगे रे | वीर जिनेश्वर उपदिशे ॥ १ ॥ आगम नोआगम तणो, भाव ते जाणो साचो रे । आतम भावे थिर होजो, पर भावे मत राचो रे वीर ॥२॥ अष्ट सकल समृद्धिनी, घट मांहे ऋद्धि दाखी रे | तेम नवपद ऋद्धि जाणजो, आतमराम छे साखी रे | वीर - ३ ॥ योग असंख्य छे जिन कला, नवपद मुख्य ते जाणो रे । एह तणे अवलंबने, आत्म ध्यान प्रमाणो रे ढाल बारमी एहवी, चोथे खंडे पूरी रे वाणी वाचक जस तणी, कोई नये न अधूरी रे ॥वीर - ४॥ । | वीर - ५ ॥ श्रीतपपदकाव्यम् बज्झ तहाब्भिन्तर-भेयमेयं - कसाय, दुज्जेय-कुकम्म भेयं । दुक्खक्खयुत्थे कय-पावनासं, तवेह दाहागमयं निरासं ॥१॥ विमलकेवलभासनभास्करं मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरा-‍ - मृत्यु - निवारणाय श्रीमते सम्यक्तपसे जलादिकं यजामहे स्वाहा । पण्डित श्री पद्मविजयजी कृत श्री नवपद पूजा प्रथम श्री अरिहंत पद पूजा श्रुतदायक श्रुतदेवता, वंदु जिन चोवीश । गुण सिद्धचक्रना गावतां, जगमां होय जगीश ॥१॥ अरिहंत सिद्ध सूरि नमुं, पाठक मुनि गुणधाम । दंसण नाण चरण वली, तप गुणमांहे उद्दाम ||२|| इंम नवपद भक्ति करी, आराधो नित्यमेव । जेहथी भवदुःख उपशमे, पामे शिव स्वयमेव ॥३॥ 504
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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