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________________ तुज अवधीरित निर्जल मत्स्य समान जो । मरी रहो जेम जगती तलमां तडफडं, भक्ति निश्चल तुजमां मुज भगवान जो ॥ सिद्ध ॥७॥ अनादिना अभ्यासथी विषय विकारमां, मारु रखडे मन ते प्रभु निवार जो ॥ आत्मकमलमां स्थिरता गुण रत्नत्रयी, करी लब्धिने भवसायर करो पार जो ॥ सिद्ध ।।८।। काव्यम् : सर्वोत्तम ध्येय पदप्रधानं, सुरासुरेन्द्रैः परिपूजितं यत् ॥ सेवस्व तद्ध्यानवतां हि गोचरं, गुणस्वरुपं शुभ-सिद्धचक्रम् ॥१॥ उपजाति वृत्तम् ॥ ॥ मंत्र ॥ मंत्र : ॐ ही श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जलादिकं यजामहे स्वाहा तृतीय आचार्यपद् पूजा ॥ दोहा ॥ आचार्य प्रवचनधरा, शासनना आधार ।। सेवो शिवसुख कारणे, हरवा भवदुःख भार । . ॥ ढाळ पहेली ॥ (मजा देते हैं क्या : र, तेरे बाल घुघरबाले-यह चाल) सेवो सूरीश्वर सिरताज, सचा धरम बतानेवाले ॥ अंचली ॥ रहे निज गुणमें मस्तान, साधे सूरिमंत्र प्रस्थान ॥ करे अति सुंदर व्याख्यान, भवोदधि पार लगाने चाले ॥ सेवो ॥१॥ तत्त्व बोधक आगम धार, दिया भवभय फंद निवार ॥ रहे जस मन नित्य अविकार, आनंद पद पदवी पानेवाले ॥ सेवो ॥२॥ गुरु निज पर के हितकार, हरे क्रोधादिक प्रकार ॥ करे जिनशासन जयकार, सूरिपदवी के दीपाने वाले ॥सेवो॥ ३॥ सारण वारण करे जेह, मुनि वाचक सूरि गुण गेह ।। जस शोभे सुंदर देह, जाति कुल उच्च धराने वाले सेवो॥ ४॥ नोद प्रति नोदन करे सार, धरे भाषा ज्ञान अपार ॥ (480
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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