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________________ मंत्रः ॐ ह्रीं श्री परमेश्वराय जन्मजरा मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जलादिकं यजामहे स्वाहा द्वितीय सिद्धपद पूजा ॥दुहा॥ अलख अगोचर अज विभु, महानंद निरवाण ।। सिद्ध अर्थ पद्वी धरा, सिद्ध नमो गुणखाण ॥१॥ सहजानंदमां लीन रहे, वहे चतुष्टय चार ॥ लोकालोक विलोकते, नहीं तस सुखका पार ॥२॥ केवली केवल ज्ञान से, सिद्ध सुख लिये जान ॥ वो भी निज मुख से कभी, करी शके नहीं व्याना ॥३॥ इस सुख को लेने लिये, सेवो सिद्ध भगवान ॥ हीन अधिक गुण सेवतां, होय अधिक गुणवान ॥४॥ ॥ ढाळ पेहली ॥ (चाल-पनिहारी की) आठ करम को क्षय करी, मारा वाला जी ॥ हुवा भवोदधि पार, वाला जी ॥ जन्म जरा मरणादिको, मारा वाला जी ॥ भय सघरे दिये टार, वाला जी ॥१॥ __ समय प्रदेश अस्पर्शीने, मारा वालाजी, चरम तिभाग विश्लेप, वालाजी ॥ अवगाहन शिवसद में मारा वाालाजी, नमो ए सिद्ध अशेष, वालाजी ॥२॥ ज्ञानावरणीय क्षय थकी, मारा वालाजी, लिया ज्ञान अनंत, वालाजी ॥ दर्शनावरणीय दूर करी मारा वालाजी, केवल दर्शन लहंत, वालाजी ॥३॥ वेदनीय कर्म विनाशसे, मारा वालाजी ॥ सुख अव्याबाद वालाजी के मारा मोह कर्म मिटाय के वालाजी, क्षायिक समकित साध, वालाजी ॥४॥ आयुष्य कर्म अलगा करी, मारा बालाजी, हुए अक्षय स्थिति धार, वालाजी ॥ लोकांते सुख भोगवे मारा वालाजी, सादि पण नहीं पार, वालाजी ॥५॥ नाम कर्म नाशी गये, मारा वालाजी, हुये अरुप गुण धाम, वालाजी ॥ गोत्र कर्मको भेद के, मारा वालाजी, अगुरुलघु गुण ठाम, वालाजी ||६|| वीर्य कर्म विडारी ने, मारा वालाजी, वीर्य अनंत गुण ठाण, वालाजी ॥ समय एक उर्ध्व गति मारा वालाजी, करे सिद्ध प्रयाण, वालाजी ॥७॥ आत्मकमल निर्मल हुऐ मारा वालाजी, भजो सिध्ध भगवान वालाजी, निजगुण लब्धि विकाशिका मारा वालाजी, पदवी सिद्ध महान वालाजी ॥८॥ 478
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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