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________________ करने में इस से बड़ी सहायता मिलती है। यह ग्रंथ पहिले एक वार छप गया था, फिर एक बार अभी मूल मात्र छपा था, परन्तु अनुक्रमणिका वगैरा की बहुत उस में त्रुटि रही थी। परन्तु अब के उन तमाम त्रुटियों को दूर कर यह संस्कार छपा है । अनुक्रमणिका, भाषार्थ शब्दों का लिंग ज्ञान, अनेकार्थ नाममाला, सब इसमें दिया गया है । प्रत्येक जैनी को मंगाकर अपने २ बालकों को पढ़ाना चाहिये । न्योछावर ।2) आने हैं। .. पार्श्वपुराण बचनिका ( ३ ) यह तेवीसवें तीर्थकरका चरित है। यह पहले संस्कृतमें ही था। अब हमने इसको सरल हिन्दीमें लिखा है। इसकी कथा बड़ी ही रोचक है । इसको पढ़ते २ तृप्ति नहीं होती है। छप रहा है बहुत सुन्दर चिकने कागजपर छपके तैयार होगा। पहिलेसे ग्राहक बनजानेवालोंको पौनी कीमत की वी० पी० से भेजा जायगा। (४) परीक्षामुख-यह न्यायमें प्रवेश करानेवाली पहिली ही पुस्तक है। इसमें सूत्रनीके “प्रमाणनयैरधिगमः" सूत्रका बहुत ही खुलासा अर्थ किया है । इसके मूलकर्ता श्रीस्वामी माणिक्यनन्दि आचार्य हैं। अनुवादक-श्री पं० घनश्यामदासनी, न्यायतीर्थ हैं। भाषा सरल व सुबोध । मूल्य ।) .. (५) आप्तपरीक्षा-इसमें सच्चे देवकी बड़ी ही खूबीके साथ परीक्षा की है । “ईश्वर सृष्टिका कर्ता नहीं हो सकता" इसका न्यायकी प्रबल युक्तियोंसे खूब समर्थन किया है । इसके मूलकर्ताअष्टसहस्रीके बनानेवाले स्वामी विद्यानन्दि आचार्य है । अनुवादक श्री पं० उमरावसिंहनी, सिद्धान्तशास्त्री हैं। भाषा सरल सबके समझने योग्य । मूल्य ।।) मिलनेका पता मैनेजर,-जैनग्रन्थकार्यालय, ललितपुर (झासी)
SR No.022754
Book TitlePrabhanjan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1916
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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