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________________ २० ] प्रभंजन-चरित । मुझे गंगश्रीसे मिला दो। दूतीने कहा कि तुम गंगश्रीके पति यमुनके पास जाना और उससे कहना कि यह जैसा तुम्हारा वस्त्र है, इसी तरहका एक मुझे भी चाहिए, कृपाकर आप ऐसा ही बनवावें । विष्णुदत्तने ऐसा ही किया और वस्त्रको लाकर दूतीके हाथमें दे दिया । दूती वस्त्रको लेकर गंगश्रीको वशमें करनेकी इच्छासे गई और क्रम २ से सबके घर फूल बाँटती हुई गंगश्रीके घर पहुंची। वहाँ उसकी शय्यापर उस वस्त्रको डालकर चली आई, और विष्णुदत्तसे कहने लगी कि तुम्हारा सब कार्य सिद्ध हो गया है, अब उत्सुक मत होओ, बहुत जल्दी गंगश्री तुम्हारे वशमें हो जायगी। कुछ कालमें जब यमुन घर आया तब उसने अपनी भार्याकी शय्यापर विष्णुदत्तका वही वस्त्र पड़ा हुआ देखा जो उसने बनवा कर दिया था । वह गंगश्रीपर बहुत रिसिया उठा और उसने उससे पूछा कि खले ! यहाँ विष्णुदत्तका यह वस्त्र कैसे आया है ? उसने कहा-मुझे मालूम नहीं । इसपर तो यमुन और भी लाल पीला हुआ और कहने लगा कि यह सब तेरी ही तो करतूत है और तू कहती कि मुझे मालूम नहीं। जा, मेर घरसे अभी. चली जा-निकल जा। यहाँ अब तेरा कुछ भी काम नहीं है। वह विचारी साध्वी गंगश्री बहुत आकुलित होकर अपने पिताके घरको चली गई। वहाँ रातके समय वह कुधी इन्दुवापिका पहुंची और उससे कहने लगीबाले ! तू अनमनी क्यों है ? गंगश्रीने अपना सभी वृत्तान्त कह सुनाया। उसके वृत्तान्तको सुनकर दूतीने कहा-यदि तुम उस विष्णुको चाहती हो, जो कि भोग भोगनेकी अपेक्षासे इन्द्रके समान है, रूपसे कामदेवके समान है, दानी होनेसे कणकी
SR No.022754
Book TitlePrabhanjan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1916
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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