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________________ ( ७६ ) हार्दिक चिंताओं से क्या होता है ? भाग्य से ही आपके इस कुमार का सब कुछ ठीक होगा। आज पुत्र जन्म से तुम्हारा मनोरथ रूपी कल्पवृक्ष पुष्पित और फलित हुआ है। अतः इस नामाङ्कित मुद्रा से इसे विभूषित कर दो"। ऐसा कहकर सखियों ने कुमार को नहला-धुला कर बेश कीमती सुन्दर वस्त्राभूषण पहना दिये । श्रीचन्द्र नाम से अंकित अंगुठी से उसे विभूषित कर दिया । उसको इन्द्र के समान सर्वाग सुन्दर और अद्भुत रूपवान देखकर सैन्द्री ने सखियों से कहा "बहनों ! देखो तो सही विधाता ने इस कुमार 'के सुन्दर शरीर को मणि-रत्नों के सारतत्वों का संग्रह करके ही बनाया मालूम देता है । दही को मन्यन कर निकाले हुए मक्खन के पिण्ड की तरह इसका कोमल और स्निग्ध शरीर है। महाराजा प्रतापसिंह के घर कल्पवृक्ष के समान आज यह राजकुमार पैदा हुआ है । अतः बड़े २ प्रयत्नों से इसकी रक्षा होनी चाहिये। बताओ, इसकी रक्षा का शीघ्र कोई उपाय बतायो। नहीं तो प्रातःकाल होते ही जयकुमार के सेवक हूँढकर इसे शीघ्र ही हस्तगत कर लेंगे । हम अनाथ हैं अतः उपाय के सिवाय हम कोई कुछ नहीं कर सकती हैं। इतना कह वह सैन्द्री रुक गई। .. ...
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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