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बाणों की बौछार को सहन न कर सकी । एवं उसके पैर उखड गये । अपने वीरों को भागते देख क्रोध से अपने होठों को दांतों से काटते हुए मल्ल और महामल्ल ने राजकुमारों पर धावा बोल दिय । बहुत देर तक घमासान युद्ध हुआ। अवसर पाकर मल्ल ने विजय कुमार को तलवार की चोट से मूर्षित कर दिया।
इधर महाराज अपने पुत्रों व सिपाहियों को कुछ खिन्न देख उसी जगह आ धमके और अपना चन्द्रहास खङ्ग निकाल कर मल्ल पर टूट पडे । कुछ हो क्षणों में महाराज प्रतापसिंह ने मल्ल का सिर काट डाला । यह देख कुशस्थलीय फौज ने अपने महाराज की जयध्वनि से आकाश को गूजा दिया।
इधर मल्ल की मृत्यु के समाचार पाते ही महामल्ल अपने जीवन को और बची खुची सेना को लेकर रत्नपुर की ओर भाग गया। महाराज प्रतापसिंह ने भी कणकोट्टपुर आदि उसके सम प्रदेश अपने प्राधीन करके क्रमशः रत्नपुर को और महामल्ल को घेर लिया। शत्रु को बलवान और नमर को अभेद्य जानकर महाराज आक्रमण के अवसर की प्रतीक्षा में वहीं डटे रहे । वहां समुद्र के किनारे नौवन विहार आदि क्रीडा करते हुए अपना समय बिताने लगे।