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-प्राक्कथन
- मानव जीवन में भोग और त्याग की परस्पर विरोधी भावनाओं का संमिश्रण दिखाई देता है। दोनों के चित्रण से ही चरित्र यथार्थ चरित्र बनता है । यदि एक को छोडकर दूसरे को ही दिखाया जाय तो वह सत्य से परे की अव्यवहार्य चीज होगी। रंगों की विविधतावाला चित्र ही चित्ताकर्षक हुआ करता है, इकरंगा चित्र उतना सुन्दर और सर्वग्राही नहीं होता। विरोधी भावनाओं में समीकरण और सामंजस्य पैदा करने वाले एक तत्त्व आत्मा को जो पहिचान पाता है, वही सम्यग्दर्शन संपन्न मानव महामानव बन कर संसार से उपर उठ जाता है।
इस पुस्तक में ऐसे ही एक महामानव श्रीचन्द्रराज का चरित्र अङ्कित किया गया है। श्रीचन्द्रराज जहां अपार सम्पत्तियों का स्वामी, महान् विजेता और कई अप्सरा जैसी रूपसी कन्यामों का स्वामी था वहां लाखों का दान करने वाला, हारने वालों के साथ उदार स्नेह सद्भाव से बरतनेवाला और संयमी संतों की सेवा भक्ति से त्याग के प्रति अनन्त अनुराग रखने वाला दिखाई देता है। ___ जीवन एक भव की ही आकस्मिक घटना नहीं हुआ करता । उसके बनने और बिगड़ने में कई जन्मजन्मान्तरों के संस्कार काम करते हैं। प्राकृत चरित्रकार श्रीसिद्धर्षि महाराज ने लिखा है