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क्रोध, मान, माया और लोभ इन चारों कषायों के चुंगल में फंसा हुआ जीव क्या २ अनर्थ नहीं कर देता ? सब कुछ कर देता है । इसीलिए ज्ञानी विवेकी लोग कषायों से बचते रहते हैं। कषाय ही जीवन को विडंबना पूर्ण बना देते हैं। श्रीवर नागिला और धरण इन्हीं कषायों के चक्कर में पड़कर दुःख पाते हुए अपनी जन्म भूमि को छोड़ने को मजबूर हुए और किसी नये नगर में जा बसे ।
नये नगर में रहते हुए श्रीधर का परिचय बढ़ा। व्यवसाय भी उन्नत हुआ। लक्ष्मी देवताकी भी कुछ कृपा हुई । इस हालत में धरण की सादी करने का विचार हुआ । इसी विचार से प्रेरित होकर भद्रंकर नाम के एक ज्योतिषी की लड़की उमादेवी के साथ बात चीत हुई।