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सुखी-दुःखी भोगी-योगी रोगी-निरोगी धनी-निधन ऐसे स्त्री-पुरुषों की टोलियां की टोलियां जिसकी छाती पर पग रखते हुए जाती हैं । जो मूक भाव से सबको अग्रसर होने के लिये मार्ग देती है ऐसी कुशस्थलपुर की सड़क पर उत्सुक आदमियों का झुण्ड जा रहा था। महाराजा प्रतापसिंह के चारों राजकुमार अपने बड़े भाई जयकुमार के साथ अपने महल के झरोखे में इच्छानुसार क्रीड़ा कर रहे थे। उन्होंने सेवकों से पूछा अाज इतनी भीड़ क्यों इकट्ठी हो रही है । सेवकों ने कहा स्वामिन् ! इन दिनों नगर में एक भारी निमित्त जाननेवाला पण्डित आया हुआ है । उसी के आस-पास आदमियों का यह समूह जा रहा है।