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________________ । ४८० ) करम से भाई हो शत्रु-करम से शत्रु हो भाई। ___कवर श्रीचंद के भी तो-करम से शत्रु थे भाई ।वही। विकट संकट निकट में हो, प्रकट हो किन्तु पुण्याई । नही फिर दुःख होता है, समझलो सार हे भाई वही। जनमते राजघर छूटा-परंतु दुःख ना पाये। तपस्याजोर से कीथी-सदा वे सुख ही सुख पाये ।वही। वणिक घर में बढे थे पर-हे रजपूत तेजस्वी। कँवर श्रीचन्द्र थे जगमें-यशस्वी खूब औजस्वी ।वही। तपस्या के प्रभावों से-भरा था भाव जो भारी । उसी के योग से उन को-मिली चन्दरकला नारी।वही। बढे धन से बढे जन से-बढे सनमान से भी वे । । बढे मावों से तप करके-हुए थे केवली भी वे वही। प्रभु पारस के शासन में हुए थे जो महाभागी। उन्हीं की कीर्तियाँ गाते, मविक जन भावना जागी।वही। तपस्वी की सदा जय हो, तपस्वी आप निर्भय हो। तपस्याजो करें उनके,करम के क्लेश भी लय हो।वही। ढाल--३ वर्धमान तप कीजिये, वर्धमान धर भाव । वर्धमान गुण प्राप्ति ही, वर्तमान पद.दाव..॥
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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