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________________ ( ४७० ) भावना - भेद धरम के चार । दान - शील - तप नर-नारी आराध कर तिर जावें संसार ॥३॥ वर्द्धमान संख्या करे बिल तप जो सार | मिटे दुःख दुर्भाग्य सब बढे पुण्य संभार ||४|| श्री पारस प्रभु शासने - ज्यों सिरिचन्द कुमार | आत्मसिद्धि पाई नमो - 'हरि कवीन्द्र' तपधार ॥५॥ ( ५ ) ( दोहा - छन्दः ) वर्तमान- शासन - घणो वद्धमान भगवान । वर्धमान तप उपदिशं वद्धमान गुणखान ॥१॥ तीर्थंकर तारक प्रभु-भवजल तारणहार | : वर्द्धमान तप साधना-समझावें सुखकार ॥२॥ इक विल उपवास इक-दो बिल उपवास । तीन बिल उपवास यों - सौबिल उपवास ॥३॥ करें भविक जो भाव से, ज्यों श्रीचन्द्रकुमार । - इह पर भव सुख पा लहें सर्व सिद्धि अधिकार | ४ | सुख सागर भगवान जिन हरिपूज्येश्वर वीर । कवीन्द्र श्रतम रूप से गाउं - जय महाबीर ॥५॥ 1 ·
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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