________________
( ४६८ )
(२) (वसंत तिलका छन्दः) आनन्द-धाम विभुवीर-जिनेश देव,
देवाधिदेव उपदेश विशेष--दाता । ज्ञाता समस्त जग के उपकारकारी,
वन्द् सदा विनय से भव भीतिहारी ॥१॥ श्रीवर्धमान-तप-धर्म निरूपणा से,
श्रीवर्धमान गुणवान सुभव्य होते । आयंबिलादि उपवास परंपरा से,
संख्या बढे शतक की सिरिचन्द जैसे ॥२॥ इच्छा निरोध तपका करना बताया,...
श्रीवीर ने बहिर अतर भाव भेदे । - हो निर्जरा सुतप से भव बन्ध टूटें,
श्रीवीर की हरि-कवीन्द्र सुकीर्ति गावें ॥३॥
... (३) ..
( हरिगीतिका छन्दः) श्रीवर्धमान महान ज्ञानी चरम तीरथनाथ ने,
श्री वर्दमान महान तप फरमा दिया जमनाथ ने ।