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मनुष्य के जीवन में जननी और जन्म भूमि की महत्ता अवर्णनीय है । जन्मभूमि का आकर्षण हृदय में इतना अधिक हुआ करता है इसका प्रधान कारण है वहां अपने आदमी रहते हैं । अपनों से रहित देश काणीपीठ कहा जाता । इसी लिये जन्म भूमि के मुकाबले स्वर्ग कमजोर माना जाता है। जैसे कि
जनम भोम री जोड़, बुधिया कोइ न कर सके । सुरगां भारी खोड़, उठे न कोइ आपणो ।
उसी जन्म भूमी की याद महाराजा को भी आने लगी। अपने श्वसुर राजा दीपचन्द्र देव से कुशस्थल को लौटने की इच्छा प्रकट की। राजा ने कुछ दिन ओर