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धारण कर लिया, मगर उसके दिल में पति के मिलने का पूरा पूरा विश्वास था । समय बीतते क्या देर लगती
। इसी आशा में उसके बारह वर्ष व्यतीत हो गयें । बारह वर्ष के बाद वहां के निवासियों को अचानक ही एक दिन चंदन के लौट आने के समाचार मिले | यह सुन कर चंदन के पिता और अशोकश्री आदि की प्रसन्नता का कोई ठिकाना ही न रहा । वे सब के सब उसके सम्मुख दौड़ पड़े । पिता, श्वसुर, मित्र, पत्नीं, और पुरवासियों को हर्षित करता हुआ और यथायोग्य दान देता हुआ वह उन सबके साथ अपन े नगर बृंहणपुर में बड़ी धूमधाम से प्रविष्ट हुआ ।
अशोकभी द्वारा किया हुआ धर्म रूपी कल्पवृक्ष आज फलित हो उठा । दुःख कपूर की तरह उड़ गया मानो वह कभी था ही नहीं । अशोकभी अपने पति के साथ बड़े आनन्द से फिर से रहने लगी ।
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पिता के परलोक सिधारनें पर राज - कुमार नरदेव उस नगर का राजा बना । तब उसने अपने मित्र चंदन सेठ को नगर सेठ बनादिया ।
एक समय विहार करते करते कोई ज्ञानी गुरु उस नगर में निकले। सूचना पाते ही राजा सेठ, श्रीकांता,