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________________ (४१) के पावां घोंक दी। समस्त सामाजिक रीति रीवाज संपन्न हुए। के प्रसंग में महाराजाने उस उपकारी अवधूत की. चर्चा छेड दी। कुमार कुछ बहाने से बाहर जाकर अवधूत.का वेश बनाकर आगया । महाराजा अवधूत को देख कर , खुश होगये । धीरे २ अवधूत ने अपनी डाढी हटाई. कुमार को पहिचान कर कहा कि अरे बेटा ! क्या अवधूत भी तुही है। तेरी लीला अपरंपार है। तब उसने सारी घटना का वर्णन किया । सुनकर सारा राजन्य परिवार और अन्तःपुर दांतों तले उंगली दबाने लगा। इस प्रकार नित नये विनोदों को करते हुए कुमार महाराज के साथ कुशस्थलपुर पधारे । पुरवासियों ने कुमार के सद्गुणों और सच्चरित्रों से प्रसन्न हो कर अनेक उत्सव समारोह किये । इस प्रकार कुशस्थलपुर में अमोद प्रमोदों का एक विशाल कार्य क्रम हो गया। महाराजाने एवं सारी राज-सभाने कुमार के अलौकि चरित्र को गुणचंद्र के मुख से सुन कर ये सब पूर्वकृत पुण्य-कर्मो के ठाठ हैं, कहते हुए बडा आनन्द अनुभव किया । - इधर भील्लराज मल्ल ने भी कुमार को प्रणाम किया उसे वापुतिका की रक्षा का अधिकारी बनाया गया ।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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