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________________ ( ४२६ । मथा। लक्ष्मण और विसारद आदि मंत्रियों ने कनकपुर और कुण्डलपुर राज्यों की भेटें अर्पण की । कुमार श्रीचन्द्र ने अपना अपूर्व खड्ग, सुवर्णपुरुष, पारसमणि, और अनमोल. रत्न, घोडों सहित सुवेग रथ धहाथी आदि सारी वस्तुएँ पिता के समक्ष हाजिर की। सासुओं ने सौतों ने सैन्ध्री आदि सखियों ने परस्पर में एक दूसरे को नमस्कार कर यथोचित रीतिरिवाज संपन्न किया। एक दूसरे के कुशल समाचारों से अवमत होकर महाराजा प्रतापसिंह ने कुमार मित्र गुणचन्द्रके मुह से श्रीचन्द्र के चरित्र को बड़े चाव से सुना। बहुत २ आनन्दित हुए । कुमार ने अपने छोटे भाई वरबीर को पिता की गोद में लिटा दिया। बाद में महाराज ने भी महारानी के वियोग की, अवधूत मिलन की बातें कह सुनाई । अवधूत का नाम लेते समय महाराज के हृदय में एक टीस सी चलती थी। उस ने मेरे प्राण बचाये, मैं कुछ नहीं कर सका इस बात का खेद जाहीर करने लगे। कुमार ने हँसते हुए कहा पिताजी आपकी दया से उसका सब जगह कल्याण ही कल्याण होगा। उस का भविष्य चमक उठेगा। आप उसकी चिंता न करें।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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