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________________ ( ४१५ ) श्रीचन्द्र ने प्रसन्न होकर उसको पाँचलाख के मूल्य का धन दिया । ओरों ने भी उसे यथा शक्ति इनाम देकर संतुष्ट किया ) we are mes आभूषणादि को लेकर श्रीचन्द्र की सराहना करता हुआ प्रसन्नता से अपने डेरे पर चला गया । रात्रि में चोर उसका सर्वस्व हरण करके ले गये। जब सुबह हुआ तो उसने अपने मालकी एक दम चोरी हो गई, देखी। घबडाते हुए उसने राज सभा में आकर श्रीचन्द्र से सारा हाल कह सुनाया। इस बात को सुनकर श्रीचन्द्र ने वहां के राजा जितशत्रु को उपालम्भ दिया । तब जितशत्रु ने महाराज से निवेदन किया कि स्वामिन् ! यहाँ पर तीन चौर हैं, और वे बहुत प्रयत्न करने पर भी पकड़े नहीं जा रहे हैं। उन्होंने इस नगर को चौरियां करके परेशान कर रक्खा है। यह उत्तर पाकर राजाधिराज श्रीचन्द्र ने वीणारव को पहले से दुगुना धन दिया । वह भी प्रदत्त धन राशि को लेकर पहले की तरह अपने डेरे पर चला गया । इधर महाराज श्रीचन्द्र स्वयं गुटिका के प्रयोग से अदृश्य होकर रात्रि में नगर में इधर उधर घूमने लगे। आधी रात के समय उनने तीन मनुष्यों को कहीं देखा।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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