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________________ ( ३९२ ) विद्या को विधि पूर्वक साधने के लिये मेरु पहाड़ पर गये _ साधना करते२ उन्हें चार महीने बीत गए हैं । अब केवल दो महीने साधना-क्रम के बाकी हैं। हम लोगों के अहो भाग्य से ही आप यहां आए हैं। अतः कृपा कर इन कन्याओं को स्वीकार कीजिये । प्रेम पूर्वक कुमार की मौन स्वीकृति से विद्याधर-बालाओं ने उनके गले में वर मालायें पहना दी। उनके साथ श्रीचन्द्र ने भोज किया। बातचीत के प्रसंग में सासुओं ने उसे अकेले ही आने का कारण पूछा । तब उसने अपना कुछ कुछ हाल ठीकतौर से उन्हें कह सुनाया। यह सुन रत्नवेगा ने कहा, "कृपाकर जब तक मणिचूड़ वापिस यहाँ लौटकर न आवें तब तक आप सुख पूर्वक यहीं रहें। . श्रीचन्द्र ने अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए कहा, "माता जी मुझे काम बहुत हैं, अतः मैं इतने दिन--तक यहाँ ठहर नहीं सकता। मैं यहाँ से शीघ्र ही कनकपुर जाना चाहता हूं। जब मणिचूड़ अपनी विद्या -सिद्धि कर के दो महीने बाद लौट आवें तब आप मुझे कुशस्थल आदि मेरे शहरों में जहाँ कहीं होऊ वहां सूचना भेज देवें। बाद में सब कुछ ठीक होगा। आप लोगों के
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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