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________________ (३८६ ) की गुफा में घुसीं और एक बारी में से होकर पाताल नगर में जा पहुँची सारा नगर मणि- प्रदीपों की कान्ति से जगमगा रहा था मदन अपनी सहेलियों समेत अपने पर महल में चली गई, और वहां कर अपनी मुख्य सखी से मेरा बाँया नेत्र बार बार फड़क मानती हूँ, कि या तो मेरे पति स्वयं ही आज यहाँ जायँगे या उनका संदेश मुझे जरूर मिल जायगा ! रत्न- जटित पलंग पर बोली, “सखि ! आज रहा है इससे मैं यह यह सुन रत्नचूला ने कहा, “सखि ! मेरी भी आज ऐसी ही मान्यता है कारण कि जिस दिन से तुम यहाँ आई हो, उसी दिन से वित्त और उपवास आदि से खूब तपस्या कर रही हो अतः वह तपस्या के प्रभाव से यहाँ तुम्हें जरूर मिलेंगें । ; इसी वार्तालाप के बीच में किसी दासी ने आकर रत्नचूला से कहा कि चलिये आपकी माता जो भोजन के लिये बुला रही हैं। यह सुन मदना ने उन सब से कहा कि बहनों ! तुम भाग जाओ, और भोजन करो। भूख न होने के कारण आज मैं भोजन नहीं करूँगी । परन्तु वे सब वहां से टस से मस न हुई, और बोली, " बहन ! हम तुम्हारे बिना अकेली भोजन नहीं करेंगी । " इम
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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