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( ३८२) दी। उनके कान में कुछ कह कर-सार वस्तुए एक गठरी में बांध कर अजन-योग से उसे बंदरिया बना दी। सामने आनेवाले सिपाहियों को दायें बांये हाथ के धक्के से गिरा कर राजा के हाथी पर शेर के जैसे दहाड़ता हुआ चढ गया, और राजा की तलवार छिन कर उसे. बांध वहीं छोड दिया ।
इतने में किसी बंदि ने कुमार को पहचान कर ये गाथाएं गई:-.
कुण्डल पुरस्स रज्जं, चंदमुही राय कन्न-परिणयणं । जक्ख विहिणा उ विहिरं, चंदरं वासिय जेण ॥ सो कुण्डल पुर सामी, सिरिचंदो जय र पयावसिंह कुलचंदो । संफुसइ जस्स तइया, जक्खो भत्तीइ पायतले ॥
अर्थात्-कुण्डलपुर के राज्य को और विवाह के द्वारा चन्द्रमुखी नाम की राज-कन्या को पानेवाले, यक्षके आदेश से नया चन्द्रपुर बसानेवाले, यक्ष द्वारा अपने पैरसहलाने वाले कुण्डलपुर के स्वामी और महाराजा प्रतापसिंह के कुल में चन्द्रमा के जैसे कुमार श्रीचन्द्र की जयहो ।
इन गाथाओं को सुनकर श्रीचन्द्रराज ने उस चारण को पर्याप्त धन देकर संतुष्ट किया। बाद में वनमें जाकर अपने रथ पर सवार हो कुमार वहां से नौ दो ग्यारह हो गये।