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________________ ( ३७० ) दिया। सर्वत्र शहर में खलबली मच गई। लोगों की चीख पुकार सुनकर राजा बड़ा दुखी हुआ और अपने सिपाहियों को हुक्म कर दिया-जाओ, दौड़ो। जैसे बने हाथी को वश में करलो । पकड़ लो। सिपाही दौड़े । उनको देख हाथी विशेष कुपित हुआ। सारे नगर को उसने तहस नहस कर दिया। सबको कुचलता हुआ वह राजद्वार की ओर आ धमका । सबको अपने जीवन की लगी थी। हाथी के मुकाबले में कोई नहीं आ रहा था । ऐसी अवस्था में अवधूत वेश धारी श्री चंद्र कुमार हाथी के पास गया। सब लोग चिल्लाने लगे। राजा ने भी मना किया । कुमार ने एक की भी न सुनी। उस मदमस्त गजराज के पास जाकर, अपने वस्त्र से.उसे अधिक कुपित किया। बाद में हाथियों की शिक्षा में निपुण उस अवधूत वेशधारी श्रीचन्द्र ने हाथी को अपने वश में कर लिया। सब के देखते २ बड़े मजे से वह उसके कंधे पर जा बैठा । हाथी ने उसे अपनी : पीठ से गिराने की बहुत कोशिश की. मगर वह अपने स्थान ..पर उटा ही रहा. हाथी उसे बल पूर्वक जंगल में ले भागा ! तीन दिन के बाद वह मद.रहित होकर शांत हो गया। किसी पहाड़ की तराई में आये हुए तालाब में जल पीने की इच्छा से कुमार नीचे उतरा । तालाब में नहा धोकर,
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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