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________________ (, ३२६ ) । बात की बात मैं उसने राजकुमार को उपर चढ़ा लिया और रात भर उसके साथ पारस्परिक प्रेम गोष्ठी की । उस समय उसने राजकुमार से पूछा कि स्वामिन् आपने मेरे हृदय में छिपे हुए भावों को किस प्रकार से जाना । राजकुमार जरूरत से ज्यादा भोला था । उसने भोलेपन से सच सच कह दिया कि ये सभी बातें मुझे अपने मित्र से मालूम हुई हैं । .. The यह सुन कर उसने अपने मन में मंत्री पुत्र को मार डालने का सोचा मगर राजकुमार के सामने उसने ये भाव किसी भी इंगित या चेष्टा द्वारा प्रकट न होने दिये । उसने राजकुमार को तरह तरह के पक्वान्नों से खूब धपाकर भोजन कराया और कुछ जहरीले लड उसे देकर कहा कि मेरे देवर को ये अवश्य दे देना । इसके बाद दोनों अपनी अपनी चिर संचित उमंगों को पूरी करने लग गये । राजकुमारी ने दूसरे दिन फिर आने की प्रतिज्ञा करा कर राजकुमार को विदा किया । राजकुमार लड्डू लिये अपने निवास स्थान पर पहुँचा । उसने वे लड्डू सुबुद्धि को दे दिये सुबुद्धि ने अपनी भाभी का दिया हुआ उपहार मान कर उन्हें बिना किसी हिचकिचाहट के ग्रहण कर लिये । राजकुमार ने वहाँ की
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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