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________________ ( ३१० ) चाहिये । अांखो के तारे और केश सचिक्कण श्याम होने चाहिये। ये सारे सुलक्षण बत्तीसों ही आप के अंगों में प्रशस्य और प्रकट रूप से दीख रहे हैं । अतः मैं आप के ही श्रीचरणों की दासी बनुगी । आप मेरा पाणि-ग्रहण कर, मेरे सुखदुःख के साथी और स्वामी बनें । अब मैं किसी की परवाह नहीं करती, केवल आप को ही अपने जीवन का आधार मानती हूं । कृपा कर के आप मुझे अपना लें बस मुझे विद्या या विद्याधर किसी की भी आवश्यकता नहीं है। प्राणनाथ ! पधारिये । इस समय आप अकेले हैं। प्रातः काल होते ही वह दुष्ट विद्याधर आ धमकेगा। . व्यर्थ में बाधा खड़ी कर देगा। इस लिये हम दोनों को यहां से चल देना चाहिये । जिस से कि वह हमें देख ही न पावे । दूसरी बात प्रार्थना रूपमें अर्ज करती हूं कि आज ही दुपहर को लग्न का समय है । विवाह की सामग्री यहां मौजूद ही है । अतः आप किन्तु परन्तु न करते हुए विवाह कार्य को साथ लें, तो बडा अच्छा हो । श्रेयांसि बहुविनानि । हुआ करता है मंगल कार्य में बाधा आही जाती है। हम तो बाधा के ठिकाने पर ही खडे हैं अतः
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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