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________________ ( ३०६ ) लिये मैं सपरिवार वहां से निकला हुआ, बाहर ही रहता हूँ । उसने मुझसे कहा एक दिन की बात है मैं पृथ्वीपर घूमता हुआ, कुशस्थलपुर नगर में पहुँचा था । वहां एक उद्यान में हाथी, घोड़े, ऊंट, रथ, और सेना आदि का पड़ाव पड़ा था। उनके बीच में जरी से काम किया हुआ एक मखमली तंबु लगा था । उसमें सोने के पलंग पर सखियों से घिरी हुई एक पद्मिनी को मैंने बैठी देखा | उस समय वह सुसराल से अपने भाई के साथ अपने पिहर- पिता के घर जा रही थी । मैं उसको देखकर मोहित होगया । रूप और सौन्दर्य की मूर्ति - उस पद्मिनीके अपहरण की इच्छा से मैं अदृश्य होकर वहां एक दिन ठहरा | परन्तु उसके शील के प्रभाव से एवं उसके पति द्वारा की हुई रक्षा के कारण मैं उसे उड़ाने में असमर्थ रहा । वह आगे कहता गया - तब मैं निराश होकर वहां से चल पड़ा । उसके समान रूपवाली स्त्री की खोज करने लगा । खोजते २ तू मुझे दिखाई दी, और मैं तुझे उड़ा कर यहां ले आया हूं । अब मैं तेरे साथ विवाह करूगा ।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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