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________________ ( ३०४ ) एक समय मेरा भाई मदनपाल किसी चित्रपट पर राजकुमारी प्रियंगुमंजरी के रूप व सौन्दर्य को देखकर उस पर मोहित होगया, परन्तु वह कुमारी राधावेध के कर्ना कुमार श्रीचन्द्र में पहले से ही प्रेम वाली थी। इसलिये उसने मदनपाल की ओर कुछ भी ध्यान न दिया। तो भी मेरा भाई प्रियंगुमंजरी के प्रेम में मोहित होकर घर से कहीं निकल गया। प्रेम का पंथ बडा ही विकराल है। कहा भी है :धर मोम के दांतों को आनन से चने लोह के चारु चबावनो है, मनु आंख विहीन को देखनो है बिन पांव को पंथ चलावनो है। बिन · डोर पतंग उड़ावनो है बिन 'बुद्धि' को पाठ पढावनो है, यह प्रेम को पंथ कराल महा तरवार की धार पे धावनो है। जब से भाई मदनपाल घर से निकला है, वापस लौटा ही नहीं। एक रोज मेरे पिताजी की राज-सभा में एक बंदी-कवि ने मधुर स्वर से कवन किया कि दान-व्यजन कोद्भूतः-श्रीचन्द्रस्य यशोऽनिलः । नव्यः कोऽप्यर्थि धूलीनां, पुजं सम्मुखमानयत् ।।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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