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ग्रीष्मऋतु अपने पूर्ण यौवन पर थी। मूर्य अपनी प्रचण्ड किरणों से जगत के प्रत्येक प्राणी को तपा रहा था। संताप से बचने के लिये सभी प्राणी आश्रय ढूढ रहे थे । विशाल वट-वृक्ष पशु-पक्षियों की एक खुश-हाल वस्ती बन रहा था । पक्षियों का कलरव बड़ा ही मुहावना लग रहा था । गर्मी की अधिकता से पशु-पक्षी अपने जन्मजात वैर को भुलाकर एक साथ सूर्य के प्रखर-ताप से अपना बचाव कर रहे थे। जल को छोड़कर संसार की सभी वस्तुएँ नीरस सी प्रतीत हो रही थीं। परोपकारी वृक्ष सब पर छाया किये हुए स्वयं एक तपस्वी के समान तप रहे थे।