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अनेक छोटे बड़े राजागण महाराज प्रतापसिंह के दर्शनार्थ आये, सभी ने अपनी २ योग्यता के अनुसार भेंट न्योछावर की । महाराज ने उन सब को स्वीकार करके उन लोगों का सम्मान सत्कार किया । अनेकों निर्धन याचकों को अनर्गल दान देते हुए अनेकों प्रकार के कौतुकों को देखते हुए वहां तक पहुंच गये जहां से दीपशिखा की दर्शनीय च्छटा दूर २ से दिखाई देती थी।