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________________ ( २५२ ) निन्दा वार्ता में लगे हुए गप-सप लगा रहे थे। कोई अपने ही भविष्य की चिन्ता में लीन हो रहे थे। कोई तास, चौपड़, सतरंज के खेलों के साथ जूए के दांव धर कर लक्ष्मी को इधर से उधर कर रहे थे। कोई बीड़ी, भांग आदि के व्यसनों से विपत्तियों का अनुभव करते हुए भी उन्हीं में मजा लूट रहे थे दुकानदार गाहकों के आने की राह देखते २ समय बीता रहे थे। कई धार्मिक जन सामायिक में, स्वाध्याय में, एवं भगवान के नाम जाप में तन्मय हो रहे थे। कड़े धूप के कारण बाहर निकलने को जी नहीं चाहता था। गृह-लचिमयां भोजन से निपट कर सीने-पिरोने, नहाने-धोने, एवं सोने-पोने के कामों में लगी हुई अपनी सुघड़ता को दिखा रही थीं। - ऐसे दुपहरी के. समय में कांतिपुरी के राजा नरसिंह को राज-सभा में हेमपुर के राजकुमार-बनावटी श्रीचन्द्रके बदले में चरितनायक कुमार श्रीचन्द्र राजकुमारी प्रियंगुमंजरी के साथ लग्न के दिन अपने प्रौढ पाण्डित्य का प्रदर्शन करा रहे थे । इस अपूर्व प्रसंग को देखने सुनने के लिके राजा ने नागरिक स्त्री-पुरुषों को भी आमंत्रित किये थे। राज-सभा खचाखच भरी हुई थी। सबकी आंखें और कान राजकुमार के रूष और ज्ञान को नंबर दे रहे थे।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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