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________________ ( २७२ ) इस प्रकार उसकी चिन्ता में डूबा, इस यक्षमंदिर में आ बैठा हूँ। क्योंकि मैंने किसी से .यह सुन रक्खा है कि राजकुमारी सदैव यहां आया करती है। परन्तु हतभागी होने के कारण मेरा उससे यहां भी मिलाप नहीं होता कारण कि जब वह यहां पर दर्शनार्थ आती है तब उसके साथ की प्रतिहारिणियें मुझे ठोक पीटकर मन्दिर से बाहिर निकाल देती हैं। हे भाई ! यह मैं अपना दुखड़ा किसके आगे रोऊँ ? तुम मुझे बड़े दयालु और परोपकारी मालूम देते हो, अतः कृपा कर मुझे कोई उपाय बताओ। ____ मदनपाल की यह बात सुन कर कुमार को बड़ी दया आई और उसने अपने मनमें विचार किया, अवश्य गुरु गुणंधराचार्य का पहले कभी इधर आना हुआ है। अहो ! राजकुमारी की चतुराई का क्या कहना ? इसने अपने भाव पुष्पों द्वारा प्रगट किये हैं। लाल-पुष्प के समान मैंने तुमको अपने में रक्त स्वयं कानों द्वारा सुना है मगर मैं तुम्हारी ओर न तो देखती हूँ और न तुम्हें स्थान ही देती हूँ। दूसरा जो कमल पुष्प उठाया उसका भी भाव यह है कि कमल के समान शुभ्र और सुगन्धित किसी व्यक्ति को जो स्वयं मुझ से विरक्त है परन्तु जिसे मैं प्राणपण से चाहती हूँ और जिसके गुण मैंने कानों से सुने हैं उसे मैंने अपने हृदय में स्थान दे दिया है। कनेर
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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