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जल जीवन-रस रूप है, जल बिन नीरस जान । नीरस जनं संसार में, मानों मृतक-समान ॥ मानव जीवन एक जलका बुदबुदा मात्र है । जल को पण्डितों ने जीवन भी कहा है, रस भी कहा है । रसमय जीवन ही जीवन है, अगर रस न रहा तो, जीवन जीवन नहीं रहता । जिसके जीवन में जीवन नहीं है तो उसका जिन्दा रहना भी भूमि को भारी करने के सिवाय कुछ नहीं है। इसी लिये ज्ञानी पुरुष जीवन में रसधारा को बहाते रहते हैं । कुमार श्रीचन्द्र पूर्ण रसिकजीवनवाला था। पूर्व जन्म की पुण्य तपश्चर्या से वर्तमान जीवन में वह आलौकिक रसकी धारा बहाता हुआ, अपना और दूसरों का समय आनंद से बीताता था।