SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (( २४६ )) को पर्दे के भीतर बिठा दी। स्नान आदि कर के उसने वहां सारी पूजा की सामग्री जमादी । उस कन्या की आँखों पर औषधि-रस - का लेप कर दिया । कुछ समय तक पूजा धूप-दीप आदि कर के नवकार मंत्र का जाप. आदि किया। - कुछ समय बीतने पर औषधि रस के प्रभाव से राजकुमारी की अांखें कमल के समान खिल गई और उसने इंद्रकेसमान तेजस्वी कुमार को विधि पूर्वक देव-पूजा.करते हुए देखा। ___कुमार ने भी अरिहंत भगवान को नमस्कार करती हुई उस कुमारी से पूछा-"राज कुमारी ! क्या तुझे अब ठीक दिखाई देता है ? जरा मेरी अंगूठी' पर लिखे हुए नाम अक्षरों को तो पढ लेना। कुमार के ऐसा कहने पर उस राजकन्या ने अंगूठी पर लिखे हुए 'श्रीचन्द्रकुमार' इस नाम को पढ़ा। पढ़कर वह बहुत प्रसन्न हुई, और प्रशंसा करने लगी। हे नाथ ! हे प्राणजीवन ! पहले भी पिताने मुझे आपको दी थी और अब आज भी मैं आपको वरण कर रही हूँ। अंगूठी से आपके नाम का और आश्चर्यकारी गुणों से आपके कुल . का-मुझे पता लग गया है।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy