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________________ बना। इसी तरह उस. के बाद जिसने भी उसे मिरफ्तार करने का बीड़ा उठाया उसकी दशा उस नगर-रचक के समान हुई । अन्त में मेरे पति रविदत्त ने अपने घर को खाली करके अपना माल असबाब दूसरों के घर में गुख रीति से रख कर फिर उस चोर को पकड़ने की प्रतिज्ञा की । मेरे पति ने तमाम रात उस चोर को खोजा मगर वह उनके हाथ नहीं आया । जब.चोर को इस बात का पता लगा कि मेरे पति ने उसे पकडने का बीड़ा उठाया है तो वह रात्रि में मेरे घर आया परन्तु किसी प्रकार का माल असबाब तो उसके हाथ न लगा। तो वह क्रोधित हो कर मेरे पास आया और मेरे हाथ पैर बांधकर एवं मुह में वस्त्र हँस कर मुझे यहां ले आया । मुझे उसने अपना नाम रत्नाकर चोर बताया है। वह प्रतिदिन कमी साक्षात् तथा कभी अदृश्य होकर इस समय जाता है, और पौ फटने पर वापस लौट आता है। हे भाई ! मुझे यहां आये तीन दिन हो गये हैं मैं बहुत ही दुखी हूँ। मुझे अपने पति तथा बच्चों का वियोग दिन रात सताता है। न जाने मेरे दूध मुहे बच्चों का क्या हुआ होगा । . हे बन्धो ! आप कौन है ? और यहां किस कारण से
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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