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( १८६ ) देगा ? अतः आप कृपा करके एवजाना देकर इस रथको वापस ग्रहण कर लें ।
यह सुन कुमारने मित्र - गुणचन्द्र से कहा, " मित्र ! जाओ, उस गायक से कह दो, कि जो कुछ तुम को दिया गया है, वह तुम्हारा ही है । दिया हुआ दान कभी वापस नहीं लिया जाता । विचार शील पुरुषों के मुह से निकले हुए वचन हाथी के दांतों की तरह वापस अन्दर नहीं जाते । जो कह दिया, सो कह दिया । वह तो मिट रेख बन ही जाती है। इसके हजारों उदाहरण भारतीय इतिहास में भरे पडे हैं
सिंह-गमन सुपुरुष वचन - केश फले इकबार । तिरिया- तेल हमीर-हट - चढे न दूजीवार |
और भी
सकृजल्पन्ति राजानः, सकृज्जयन्ति पण्डिताः । सकृत्कन्याः प्रदीयन्ते, त्रीण्येतानि सकृत् सकृत् ॥
अर्थात् - राजाओं के बचन, उत्तम पण्डितों के वचन जो निकल गये वो निकलगये, वार २ नहीं बदलते, और कन्या भी - एक वार ही व्याही जाती है वार वार नहीं । अतः उस बीणारव गायक से कह दो, कि अगर तुम्हारी