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से करें तो वह याचकों के अगोचर है। कल्पवृच से करें तो वह काष्ठरूप है । चिन्तामणि से करें तो वह पत्थर मात्र है । कामधेनु से करें तो वह केवल पशु ही है, और अगर अमृत से करें वो वह शेषनाग आदि सांपों से घिरा हुआ है अतः कुमार थाप उपमा के अभाव में अनुपम हैं।
उस समय वहां दूसरे भी कई कवि उपस्थित थे । उन्होने भी श्रीचन्द्र की प्रशंसा में बड़े सुन्दर २. श्लोकों की रचना सुनाई। कुमार ने उनका भी यथायोग्य धन और वस्त्राभूषणों से सत्कार सन्मान किया । इस प्रकार अन्यान्य भाट चारण आदि याचकों को कुमार ने इच्छा से अधिक दान देकर सन्तुष्ट करके विदा किया ।
वहां उस समय उस उत्सव में आये सभी लोग कुमारद्वारा सन्मानित और सत्कृत होकर कुमार की उदारता से चकित चारों ओर कुमार के गुणों की और भाग्य की प्रशंसा करने लगे । लोग कहने लगे राजा और राजकुमार भो क्या दे सकते हैं जितना कि इस श्रेष्ठि-कुमार ने दान दिया है। इस प्रकार सुन्दर वस्त्रालंकारों से सुसज्जित स्त्री-पुरुष प्रसन्न हो अपने २ उतारे पर गये !
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रथ के हाथ से निकल जाने पर सेठ लक्ष्मीदत्त को बेहद दुःख हुआ । साथियों ने भी नमक मिर्च लगाकर