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(१६८ ) दही .माण हैं । इसका जवाब मैं नहीं दे सकता हूँ। आपको इस संबंध में उन्ही से बातचीत करनी चाहिये ।
कुमारकी इस बात से धोर मंत्री बडे प्रसन्न हुए । कुमारसे अति सन्मान और सत्कार को पाकर वे कुशस्थल में कुमार के पिता सेठ लक्ष्मीदत्तजी से मिलने के लये कुमार की आज्ञा लेकर चलदिये ।
कुमारने भी राजा दीपचन्द्र देव से अपने नगर की ओर जाने की आज्ञा मांगी। बड़ी मुश्किल से राजा को आज्ञा देनी पडी। आखिरकार कुमार राजा की दी हुई सारी देहज-सामग्री को लेकर रवाना हुआ । केवल हाथियों को उसने वहीं-दीप शिखा में ही रखा।
राजा, रानिये, राजवर्गी, और राज-परिवार के लोग, मय-नगर-निवासियों के-कुमार को पहूँचा ने के लिये नगर से कुछ दूरतक गये । कुमारने उन सब को प्रथम विश्राम पर ठहरा कर, अलग २ नमस्कार करके, उन सब से बिदा मांगी । कुमार के प्रेम और भक्ति से प्रसन्न हुए उन सबने तरह २ के आशीर्वाद दिये । अपनी मोरसे उचित शिष्टाचार करके मन में हर्ष और विषाद लिये'जल्दी दर्शन दीजियेगा' कहते हुए दीपशिखा के नागरिक अपने नगर की ओर लौट गये।